श्रीचैतन्य वाणी के सुनने से ही चैतन्यमयी सेवा का उन्मेष
- The Symbol of Faith
- Aug 19, 2024
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श्रीचैतन्य वाणी के सुनने से ही चैतन्यमयी सेवा का उन्मेष
— परमहंस जगद्गुरु श्रील प्रभुपाद भक्तिसिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ठाकुर; श्रील प्रभुपाद की वक्तृतावली से संगृहीत
जितनी मात्रा में चैतन्यचंद्र की कृपा की कथा जिसके कानों में प्रवेश करती हैं, वह चैतन्य की सेवा करने के लिए उतना ही प्रलोभित होता है। जिसने उस परिपूर्ण चेतन-विग्रह की कथा पूर्णतः सुनी लिया है, उसने खुद को पूरी तरह से उसकी सेवा में समर्पित कर दिया है। श्रीचैतन्यचंद्र सोलह कलाओं की परिपूर्ण वस्तु हैं; इसलिए, यदि उनकी चैतन्यमयी कथा जीवों के हृदय में प्रवेश करती हैं, तो यह जीवों को उनके चरणकमलों की ओर सोलह आने आकर्षित करेगी। जो व्यक्ति श्रीचैतन्य कथा को आंशिक रूप से सुनता है वह आंशिक रूप से स्वयं को उनके चरण कमलों में समर्पित करता है।
यह ज्ञात होना चाहिए कि जब तक मनुष्य, देह, गेह, पुत्र, कलत्र, और शरीर,मन एवं वाक्य से, भगवान श्रीचैतन्यचंद्र की निरंतर सेवा में पूर्णतः तल्लीन नहीं हो जाते। तब तक, उसने श्रीचैतन्यचंद्र की कथा पूर्णतः नहीं सुनी है, यह जानना चाहिए।
येषां स एष भगवान् दययेदनन्त:
सर्वात्मनाश्रितपदो यदि निर्व्यलीकम् ।
ते दुस्तरामतितरन्ति च देवमायां
नैषां ममाहमिति धी: श्वशृगालभक्ष्ये ॥
(श्रीमद्भागवत २/७/४२)
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